रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान (डीआईबीईआर) ने भारत में जैव ईंधन की फसल कैमेलिना सैटिवा को पेश किया है। कैमलिना ऑयल से नए उत्पादों के संश्लेषण हेतु प्रिकर्सर के तौर पर पॉलीओल्स, डाईइलैक्ट्रिक फिलर्स, हाइड्रॉक्सिल फैटी एसिड के रूप में ऊर्जा समाधान विकसित करने के लिए अनुसंधान एवं विकास कार्य प्रगति पर है। संस्थान ने उपयोगी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पाइन नीडल्स और नगरपालिका के कचरे (पॉलिथीन-एचडीपीई एवं एलडीपीई) जैसे फोरेस्ट प्लांट अवशेषों के प्रसंस्करण के लिए विकासशील प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान एवं विकास को क्रियान्वित किया है। उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों के देशी शैवाल का उपयोग करते हुए जैव ईंधन / जैव ऊर्जा समाधान खोजने के लिए भी अनुसंधान एवं विकास प्रगति पर है। संस्थान, सीमावर्ती क्षेत्र (लगभग 1500 मीटर एएसएल) पर स्थित सेना की टुकड़ियों को उनके मुख्य राशन में हरी सब्जियों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत तकनीकी सहायता देने और संरक्षित खेती (पॉलीहाउस खेती, हरितग्रह खेती, ट्रेंच खेती, लो टनल इत्यादि) जैसी पूर्व विकसित तकनीकों के प्रशिक्षण के माध्यम से सहायता प्रदान कर रहा है।
उत्तराखंड की उत्कृष्ट और दुर्लभ जैव विविधता का, ल्यूकोडर्मा और एक्जिमा जैसी दुर्लभ और जटिल विकृतियों में चिकित्सा समाधान विकसित करने के लिए डीआईबीईआर द्वारा सावधानीपूर्वक उपयोग किया गया है। न्यूट्रास्यूटिकल तैयारियों का टीओटी उत्तराखंड के देशी नैचुरल क्रेटेगस क्रैनुलेटा और ओफियोकोर्डिसेप्स से विकसित किया गया है।