शैवाल बायोमास उत्पादन हेतु कम लागत वाली प्रौद्योगिकी
उत्तराखण्ड के अत्यन्त विषम पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल शैवाल उपभेदों को एकत्रित किया गया है। प्रयोगशाला तथा नियंत्रित क्षेत्र परिस्थितियों के अधीन गुणन हेतु कम लागत वाली प्रौद्योगिकी का विकास किया गया है। चर्बीनुमा सामग्री (38-40 प्रतिशत) युक्त शैवाल बायोमास का संवर्धन प्राप्त किया जा चुका है। यह प्रौद्योगिकी प्रयोगशालाई स्तर और नियंत्रित क्षेत्र परिस्थितियों के लिए इस समय उपयुक्त है और इसके लिए पेटेंट दायर लिया गया है। शैवाल से विभिन्न बाय ईंधन का निर्माण करने के लिए अनुसन्धान और विकास जारी है।
बायोईंधन पैदावार के व्यापक प्रसार हेतु उत्तक संवर्धन — जैट्रोफैक्यूरस
उत्तक संवर्धन से सम्भव बनाए गए व्यापक प्रसार और तद्नन्तर दृढ़ीकरण व क्षेत्र में स्थानान्तरण के लिए समर्थक अवयवों का विकास किया गया है। मध्य प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के अर्ध-शुष्क इलाकों में इनका प्रदर्शन भी किया गया है।
जट्रोफा में बेहतर पैदावार हेतु कृषि-प्रयोगों का विकास अर्ध-शुष्क इलाकों के लिए किया गया है। इन प्रयोगों में नर्सरियों में पैदा करना, प्रत्यारोपण, बचावयुक्त सिंचाई और उर्वरकों का उपयोग (मिट्टी के प्रकार एवं कृषि-जलवायु क्षेत्रों पर आधारित), छंटनी, कटाई और कटाई-उपरान्त गतिविधियां सम्मिलित हैं।
स्थान उत्थापन हेतु देवदारनुमा सुइयों के गैसीकरण के दौरान उतपान ताप को खींचने के लिए प्रौद्योगिकी का विकास किया है, जिससे संयुक्त ताप व ऊर्जा मॉडल के अन्तर्गत होनेवाले फायदों को अधिकतम किया जा सकता है। यह प्रौद्योगिकी नियंत्रित क्षेत्र परिस्थितियों के स्तर पर विद्यमान है।
हाइड्रोजन-समृद्ध सिनगैस करने वाली बाष्प गैसीकरण प्रक्रिया का विकास प्रयोगशाला स्तर पर किया गया है। इस तरह उत्पन्न सिनगैस को अनेक बायो-ऊर्जा और बायो ईंधन उत्पादन के लिए पहुंचाया जा सकता है।
कम सघनता वाले पॉलिथिलीन और जैविक अपशिष्ट के मिश्रण को ऊर्जा-समृद्ध बायो-प्लास्टिक भुने हुए पदार्थ प्राप्त करने के लिए संयुक्त रूप से ताप-अपघटित किया जाता है, जिसका उपयोग ऊर्जा यन्त्रों के उपकरणों के निर्माण के लिए किया जाता है। यह प्रौद्योगिकी इस समय क्षेत्र परिस्थितियों के अधीन नियंत्रित है। इस प्रौद्योगिकी को लेकर एक पेटण्ट दायर किया जा चुका है जबकि दूसरे के लिए आवेदन हो चुका है।
उच्च सघनता पॉलिथिलीन से उच्च शुद्धता वाले सी16 समृद्ध कच्चे हाइड्रोकार्बन के उत्पादन हेतु प्रौद्योगिकी का विकास किया गया है, जो इस समय प्रयोगशाला स्तर पर है।
देवदारनुमा सुइयों की ईंट और गोलियां बनाकर उनकी ऊर्जा सघनता समृद्ध करने हेतु जिल्दीकरण और योगात्मकों का संयोग का मानकीकरण किया गया है। यह प्रौद्योगिकी इस समय प्रयोगशाला स्तर पर है और इसके लिए बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का दावा पेश किया जा रहा है।
नवीन कच्चे माल से पॉलियॉलों को प्राप्त करने के लिए प्रौद्योगिकी का विकास किया गया है, जो नागरिक व सैन्य प्रकार के अनुप्रवाहात्मक उपयोगों के लिए उपयुक्त है। यह प्रौद्योगिकी इस समय प्रयोगशाला स्तर पर है और इसके लिए पेटण्ट का आवेदन हो चुका है।
कच्चे माल विशेष से तेल को एपॉक्सी व हाइड्रॉक्सिल वसायुक्त अम्लों में, जो औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, बदलने हेतु एक नवीन परकरिया का विकास हुआ है। यह प्रौद्योगिकी इस समय प्रयोगशाला स्तर पर है।
रक्षा अनुसन्धान और विकास संस्थान (डी.आर.डी.ओ.) के डी.आई.बी.ई.आर. की हाइड्रोपोनिक्स प्रौद्योगिकी एक विशिष्ट पौष्टिक तरल मिश्रण पर आधारित है, जो अनेक फसलों के लिए बढ़े हुए पैदावार सुनिश्चित करता है। इन फसलों में पालक, धनिया, टमाटर, खीरा, बैंगन, अजवायन, बन्दगोभी, ब्रोकोली, स्ट्रॉबेरी, करेला, लौकी आदि शामिल हैं। यह सम्पूर्ण प्रणाली कम लागत, कम रखरखाव वाली और पर्यावरण के अनुकूल है। इस प्रौद्योगिकी के लिए एक पेटण्ट दायर किया गया है और इसका परीक्षण ऐण्टार्टिका के अत्यन्त कठोर मौसम में किया जा चुका है।
पीट कोयला, वर्मिकुलाइट और पर्लाइट (एक प्रकार का शैल) के मिश्रण का पोट्रे और मूल प्रशिक्षकों के अन्तर्गत इस्तेमाल करते हुए फसल वनस्पतियों के उच्च-तकनीक नर्सरी प्रौद्योगिकी का विकास किया गया है। बहुस्तरीय प्रणाली का उपयोग करते हुए औसतन 1.0 मीटर क्षेत्र में कोहड़े की पैदावार के 600 नर्सरी पौधे उगाए जा सकते हैं, जो 100 मीटर 2 क्षेत्र में 60 हजार पौधों के रोपण की सुविधा प्रदान करती है। इससे 60,000 रुपयों तक का लाभ प्राप्त हो सकता है। जबकि टमाटर, शिमला मिर्च, मिर्च, बैंगन आदि में एक मीटर 2 के क्षेत्र में 5,000 पौधे बसाये जा सकते हैं जो व्यावसायिक तौर पर एक लाभदायक उपक्रम हो सकता है।
केन्द्रीय हिमालयी क्षेत्रों में विभिन्न कृषि जलवायु इलाकों के लिए उपयुक्त ग्रीनहाउसों में वनस्पति उत्पादन प्रौद्योगिकी का विकास किया गया है। डी.आई.बी.ई.आर. ने अलग-अलग ऊंचाइयों में वनस्पति उत्पादन के लिए उपयुक्त विभिन्न डिजाइनों, आकारों और परिमाओं के ग्रीनहाउसों की पहचान की है।
प्रकृति में संकटग्रस्त ओ साइनेसिस के दोहन को कम करने के लिए कृत्रिम परिवेशीय खेती कायम कर उसे उद्योग के साझेदारों को हस्तान्तरित किया गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस तरह की खेती में बीजाणुओं को भी प्रापत्र किया गया है। यह प्रौद्योगिकी पेटण्ट द्वारा सुरक्षित है।
घोड़ों व अश्वजातीय चौपदों के लिए 10-12 दिनों में हरे चारे के उत्पादन हेतु कम लागत वाली प्रौद्योगिकी का विकास किया गया है। नियंत्रित क्षेत्र परिस्थितियों में यह प्रौद्योगिकी अच्छे ढंग से काम करती है।
डी.आई.बी.ई.आर. का नाम अपने पूर्व रूप रक्षा कृषि अनुसन्धान प्रयोगशाला (डी.ए.आर.एल.) के 2008 में पुनर्नामकरण की बाद पड़ा है। डी.ए.आर.एल. के रूप में कई कृषि व सम्बद्ध प्रौद्योगिकियों का विकास किया गया, जिनका वितरण उत्तराखण्ड आउट तवांग के सीमान्त क्षेत्रों में बहिर्गमन को रोकने की दूरगामी दृष्टि से किया जा रहा है। यह वहां की राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों से समन्वय के साथ किया जा रहा है। निम्नलिखित प्रौद्योगिकियों का वितरण किया जा रहा है