वर्ष 2008 में रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान (डीआईबीईआर) की स्थापना इसके मुख्यालय के साथ हल्द्वानी, जिला नैनीताल, उत्तराखंड में की गई थी। संस्थान का मिशन रक्षा उपयोग के लिए जैव संसाधन और जैव ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का विकास करना है।
संस्थान का पुनःनामकरण, पूर्ववर्ती संस्थान "रक्षा कृषि प्रयोगशाला" (डीएआरएल) को बदल कर किया गया था, जिसका मुख्यालय पिथौरागढ़ (1524 मीटर एएसएल), उत्तराखंड और औली (3142 मीटर एएसएल) और हरसिल (3242 मीटर एएसएल) में स्थित था। वर्ष 1962 में इन इकाइयों की उत्पत्ति हिमालयी क्षेत्र में सतत और पर्यावरण के अनुकूल उच्च उन्नतांश वाली कृषि प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए निर्धारित अधिदेश के साथ की गई। 60 के दशक में, कृषि अनुसंधान इकाई (एआरयू) की स्थापना हवलबाग में प्रौद्योगिकियों इकाई के साथ अल्मोड़ा के सितोली में की गई थी। बाद में एआरयू को बंद कर दिया गया और 90 के दशक के दौरान पिथौरागढ़ में अपने मुख्यालय के साथ पूर्ण रक्षा कृषि अनुसंधान प्रयोगशाला (डीएआरएल) अस्तित्व में आई। पिछले कुछ वर्षों में डीएआरएल में सतत और सावधानीपूर्वक अनुसंधान और विकास के परिणामस्वरूप उत्तराखंड के मध्य ऊन्नतांश वाले स्थानों के लिए उपयुक्त सब्जी किस्मों का विमोचन किया गया है। इन क्षेत्रों में ताजा खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने की खोज में पहाड़ी पर्यावरण के लिए सबसे उपयुक्त संरक्षित और कम मृदा में खेती के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियां विकसित की गई थीं।
70 के दशक के दौरान उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र के लिए मक्का की अधिक उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने के लिए प्रारंभिक अनुसंधान और विकास शुरू किया गया था। अवसर और दूरदराज के सीमावर्ती क्षेत्रों के ग्रामीण समुदाय के सतत विकास और आजीविका बढ़ाने के लिए मछली पालन, बकरी पालन, मुर्गी पालन, शूकर पालन, पशु पालन आदि जैसे संघटकों के साथ उत्तरकाशी के पहाड़ी क्षेत्रों के लिए विविधीकृत कृषि प्रौद्योगिकी को लोकप्रिय और अनुकूलित करने के प्रयास भी किए गए। सशस्त्र बलों को ताजा सब्जियों और ब्रोइलर चिकन के संबंध में रसद की आपूर्ति का समाधान करने के लिए 36 क्षेत्रों (हिमाचल प्रदेश) के ठंडे रेगिस्तान में सब्जी की खेती और ब्रोइलर उत्पादन पर अनुसंधान और विकास कार्य शुरू किया गया था। बाड़मेर (राजस्थान) के अरबा में वर्ष 1998 के दौरान विस्तारित ईडी संयंत्र से छोड़े गए खारे पानी का उपयोग करने वाले लवण सहनीय सब्जी की खेती के आवरण के लिए अनुसंधान और विकास कार्य शुरू किया गया था। प्रयोगशाला ने नागालैंड के दीमापुर जिले में ग्रामीण जनता के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए कृषि-पशुपालन पद्धतियों के एकीकृत दृष्टिकोण का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया। डीएआरएल ने पांच भारतीय अंटार्कटिक अभियानों में सक्रिय रूप से भाग लिया है जो महासागर विकास विभाग, भारत सरकार के IX, X, XI, XV और XVI हैं।
डीएआरएल ने सफलतापूर्वक हीड्रोपोनिक्स शुरू किया था और भारतीय अंटार्कटिक अभियान के इतिहास में पहली बार ध्रुवीय क्षेत्र में सब्जियों और फूलों की ग्रीन हाउस खेती की स्थापना की। कृषि अनुसंधान के अलावा केंद्रीय हिमालय के दुर्गम उच्च ऊन्नतांश वाले क्षेत्रों में सर्वांगीण सुधार लाने की दृष्टि से प्राकृतिक जैव-संसाधन संरक्षण पर बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाया गया था।
कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारियों के एक हिस्से के रूप में, डीएआरएल ने पिछले कुछ वर्षों में उत्तराखंड में विभिन्न आपदाओं के दौरान राहत प्रदान करने में मुख्य भूमिका निभाने में सहायक रहा और आधुनिक कृषि-पशु प्रौद्योगिकियों के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए सुदूर सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे मना (चमोली), सिल (पिथौरागढ़) और मुनस्यारी (पिथौरागढ़) को अंगीकार करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
समय बीतने के साथ-साथ, राष्ट्रीय नीतियों में परिवर्तन सहित कई राष्ट्रीय निकायों को बचाव और राहत के लिए आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित आपदा राहत कार्यों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए गठित किया गया था। संसाधित/डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की उपलब्धता ने सशस्त्र बलों की राशन की आवश्यकताओं को भी सुदृढ़ किया था। इन सभी ने इस संस्थान के अधिदेश में परिवर्तन के लिए एक मंच तैयार किया। समय आने पर नए अधिदेश और महत्वपूर्ण क्षेत्रों के साथ डीएआरएल का पुनःनामकरण करके डीआईबीईआर कर दिया गया।