डॉ संजय के. द्विवेदी
डॉ संजय के. द्विवेदी
निदेशक, कार्मिक निदेशालय

डॉ. संजय के द्विवेदी, वैज्ञानिक 'जी' ने 01 जुलाई 2021 को डायरेक्टर ऑफ पर्सनेल (डीओपी), डीआरडीओ के रूप में पदभार ग्रहण किया।

डॉ. संजय के द्विवेदी वर्ष 1996 में डीआरडीओ में शामिल हुए और 2007 तक डीआईएचएआर, लेह (लद्दाख) में कार्यरत थे। इन्होंने लद्दाख में सुरक्षित खेती, लक्षण, फैलाव और पौधों के आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन्होंने लद्दाख के काफी ऊंचाई वाले ठंडे शुष्क क्षेत्र में उगने वाले पौधों जैसे सी बकथॉर्न, एप्रीकॉट, सेब और शहतूत की जैव विविधता के लिए फील्ड जीन बैंक की स्थापना की। सी बकथॉर्न (जो "लेह बेरी" के नाम से प्रसिद्ध है) से बने हर्बल पेय पदार्थ को तैयार करने, पेटेंट और व्यवसाय करने में इनके महत्वपूर्ण योगदान को सभी लोग जानते हैं। इसके बाद, इन्होंने 2007 से 2015 तक सीईपीटीएएम, मेटकाफ हाउस, दिल्ली में कार्य किया और पुरे देश के 25 शहरों में डीआरडीओ प्रवेश परीक्षा के डिजाइन और समन्वय में योगदान दिया। इन्होंने डीआरडीओ में डीआरटीसी और एडमिन और संबद्ध संवर्गों की केंद्रीकृत भर्ती के सात चक्र को सफलतापूर्वक पूरा किया।

वह डीआईबीईआर, हल्द्वानी के मध्य हिमालयी क्षेत्र में सीमावर्ती क्षेत्रों के उत्थान के लिए कृषि प्रौद्योगिकियों के विकास, प्रदर्शन और हस्तांतरण में संलग्न थे। इन्होंने कम लागत वाली ग्रीनहाउस तकनीक, मिट्टी रहित (हाइड्रोपोनिक) फसलों की खेती और रक्षा उद्देश्यों के लिए स्थानीय वनस्पति संसाधनों के उपयोग को सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया। इन्होंने उत्तराखंड के दूरदराज और सीमावर्ती क्षेत्रों में बेरोजगार युवाओं, पूर्व सैनिकों और स्थानीय लोगों के लिए कौशल/उद्यमिता विकास कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से चलाया। इसके बाद इन्होंने दिसंबर 2016 से जून 2017 तक निदेशक, डीआईबीईआर के रूप में भी काम किया।

डॉ. द्विवेदी ने मार्च 2018 से जून 2021 तक निदेशक, डीआरएल, तेजपुर (असम) के रूप में भी कार्य किया। वह नई फसलों/किस्मों/संकरों आदि की शुरूआत करके प्रयोगशालाओं और परियोजनाओं को उपयोगकर्ताओं, प्रौद्योगिकी प्रदर्शनों के साथ जोड़ने और अरुणाचल प्रदेश के दूरदराज और सीमावर्ती क्षेत्रों में हस्तांतर करने में लगे हुए थे। इन्होंने विभिन्न उत्पादों और प्रौद्योगिकियों के विकास के अलावा, स्थानीय युवाओं और महिलाओं के लिए कौशल विकास कार्यक्रमों और सशस्त्र बलों के लाभ के लिए स्थानीय संसाधनों के उपयोग का प्रबंध किया।

डॉ. द्विवेदी के नाम नौ पेटेंट, 91 रिसर्च पब्लिकेशन, 16 मोनोग्राफ और तीन पुस्तकें हैं। वह छह प्रोफेशनल सोसाइटीज के आजीवन सदस्य, प्रोग्रेसिव हॉर्टिकल्चरल जर्नल के प्रधान संपादक और तीन प्रोफेशनल सोसाइटीज के फेलो हैं। वह डीआरडीओ यंग साइंटिस्ट अवार्ड, आईसीएआर फखरुद्दीन अली अहमद अवार्ड, आईएसएचआरडी हिमाद्री यंग साइंटिस्ट अवार्ड और एसएआई नेशनल सीनियर साइंटिस्ट अवार्ड के प्राप्तकर्ता हैं।

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