आधुनिक युद्धकर्म में निर्देशित प्रक्षेपास्त्र प्रणाली के महत्व को महसूस करते हुए 1958 में विशेष हथियार विकास दल (एसडब्ल्यूडीटी) गठित हुआ था। बाद में यह दल ने विस्तार कर रक्षा विज्ञान केंद्र, दिल्ली के परिसर में 1961 में एक पूर्ण सुसज्जित प्रयोगशाला डीआरडीएल का रूप ले लिया। फरवरी, 1962 में यह प्रयोगशाला हैदराबाद चली गई, जहां भारत में निर्देशित प्रक्षेपास्त्र की कहानी शुरू होती है।
शुरुआती चरण के दौरान, प्रयोगशाला ने एक टैंकरोधी प्रक्षेपास्त्र प्रणाली और स्वविकसित राकेटों का सफलतापूर्वक विकास करके उन्हें उड़ान परीक्षण के माध्यम प्रमाणित कर दिया। डीआरडीएल में यथाशीघ्र 1965 में आईबीएम 1620 स्थापित कर दिया गया, जो उड़ान अनुरूपता के परीक्षण में प्रयोग होता है।
1972 में परियोजना डेविल, मध्य दूरी की सतह से सतह पर मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र शुरू हुआ। इस काल में बड़ी संख्या में अवसंरचना और परीक्षण सुविधाएं स्थापित की गईं। इस अवधि के दौरान स्थापित की गई प्रमुख सुविधाओं में वायु-गतिकीय, संरचनात्मक और पर्यावरणीय परीक्षण सुविधाएं, तरल एवं ठोस प्रणोदन सुविधाएं, संरचनागत एवं अभियांत्रिकी सुविधाएं; नियंत्रण, निर्देशन, एफआरपी, रबर तथा कंप्यूटर केंद्र, सतह एवं उड़ान उपकरण तथा आनबोर्ड शक्ति आपूर्ति सुविधाएं शामिल हैं। परियोजना डेविल के लिए उपकरणों / तंत्र के विकास ने भविष्य के आईजीएमडीपी कार्यक्रम के लिए प्रौद्योगिकी सांचा तैयार किया।
1982 के बाद डीआरडीएल ने एकसाथ विभिन्न प्रकार की प्रक्षेपास्त्र प्रणालियों के डिजाइन एवं विकास का काम लेकर बड़ी छलांग लगाई, जो उसे एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (आईजीएमडीपी) के तहत सीमित श्रृंखला उत्पादन की ओर ले गया। इस कार्यक्रम के तहत अग्नि-एक प्रौद्योगिकी प्रतिपादक के अलावा पृथ्वी सतह से सतह पर मार करने वाली प्रक्षेपास्त्र प्रणाली, त्रिशूल-तीव्र प्रतिक्रिया वाली कम दूरी की सतह से हवा मे मार करने वाली प्रक्षेपास्त्र प्रणाली, नाग-तीसरी पीढ़ी की टैंकरोधी प्रक्षेपास्त्र प्रणाली और आकाश-मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली प्रक्षेपास्त्र प्रणाली का कार्य संभाला।
विकास, एकीकरण, परीक्षण तथा गुणवत्ता समाश्वासन की जरूरतों को पूरा करने के लिए डीआरडीएल के स्वामित्व में अनुसंधान केंद्र इमारत (आरसीआई), मिश्रित उत्पाद विकास केंद्र (सीपीडीसी), और अंतरिम परीक्षण सीमा (आईटीआर) नाम के तीन प्रतिष्ठान असतित्व में आए और इस काल के दौरान अलग दक्षता एजेंसी प्रक्षेपास्त्र प्रणाली गुणवत्ता समाश्वासन एजेंसी (एसएसक्यूएए) की स्थापना हुई। बाद में इन प्रतिष्ठानों ने स्वतंत्र स्थिति हासिल कर ली। वर्ष 1999 में लंबी दूरी की प्रणालियों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए डीआरडीएल से ही एक आधुनिक प्रणाली प्रयोगशाला नाम से एक अन्य प्रयोगशाला अस्तित्व में आई। प्रयोगशाला के इस समूह को अब प्रक्षेपास्त्र परिसर कहा जाता है।
आज डीआरडीएल अन्य प्रक्षेपास्त्र परिसर प्रयोगशालाओं के साथ देश का प्रमुख प्रक्षेपास्त्र अनुसंधान संस्थान है।