डॉ.दुव्वुरी शेषगिरि, वैज्ञानिक एच, को 1 जून 2024 से केरल में एकमात्र डीआरडीओ प्रयोगशाला, नौसेना भौतिक और समुद्र विज्ञान प्रयोगशाला (एनपीओएल) के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया है। इस प्रतिष्ठित प्रयोगशाला के 11वें निदेशक के रूप में कार्यभार संभालने से पहले वह एलआरडीई बैंगलोर में एयरबोर्न और स्पेसबोर्न रडार डिवीजन के प्रमुख के रूप में कार्यरत थे।
डॉ. डी शेषगिरी ने 2002 में एक कनिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में एलआरडीई,बैंगलोर में कार्यभार ग्रहण किया था और प्रतिष्ठित कार्यक्रम-वायु रक्षा (एडी) में काम किया। उन्होंने बहुत लंबी दूरी की रडार प्रणालियों का संचालन किया और कई एडी मिशनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । वह एयरबोर्न सिस्टम के लिए रडार सिस्टम समूह के प्रमुख थे और उन्होंने भारत के पहले स्वदेशी सक्रिय चरणबद्ध ऐरे रडार,एलएसटीएआर के डिजाइन और विकास का नेतृत्व किया,जिससे एईडब्ल्यू एवं सी के प्राथमिक रडार को विकसित किया गया |
वह प्रोजेक्ट एईडब्ल्यू एवं सी के लिए सिस्टम इंजीनियर के रूप में शामिल हुए और बाद में प्रोजेक्ट डायरेक्टर बने। वहां उन्होंने हवा से हवा में प्राथमिक मोड के साथ पहले स्वदेशी एयरबोर्न रडार के विकास का नेतृत्व किया। उन्होंने हवाई अव्यवस्था को संभालने के लिए कई नवीन तकनीकें विकसित कीं और डिटेक्शन की सीमा को बढ़ाने के लिए भी तकनीकें विकसित कीं। उन्होंने तेजस - लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) में इस्तेमाल होने वाले स्वदेशी रडार उत्तम के परियोजना निदेशक के रूप में भी काम किया। इस परियोजना ने जटिल, आधुनिक एआई रडार सिस्टम को डिजाइन, विकसित और संचालित करने की देश की क्षमता का प्रदर्शन किया और इस रडार के साथ सु-30 मेक 1, मिग-29के और एलसीए के सभी वेरिएंट सहित कई लड़ाकू विमानों को फिट करने की तैयारी है। इन दो एयरबोर्न रडार ने भारत को एयरबोर्न रडार सेगमेंट में आत्मनिर्भर बना दिया। भारत एयरबोर्न और फायर कंट्रोल रडार दोनों को सफलतापूर्वक विकसित करने वाला दुनिया का तीसरा देश है। उन्होंने एयरबोर्न राडार में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई।
उन्हें 2011 में साइंटिस्ट ऑफ द ईयर अवार्ड, आईईटीई-आईआरएस अवार्ड 2019, स्कॉच प्लैटिनम अवार्ड 2016 और एलसीए के लिए उत्तम रडार के विकास के लिए पाथ ब्रेकिंग रिसर्च अवार्ड 2020 सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उन्होंने प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और पत्रिकाओं में लगभग 40 शोध लेख प्रकाशित किए हैं|