डॉ. मनमोहन परिदा, उत्कृष्ट वैज्ञानिक
डॉ. मनमोहन परिदा, उत्कृष्ट वैज्ञानिक
निदेशक, रक्षा अनुसंधान एवं विकास स्थापना (डीआरडीई)

डॉ. मनमोहन परिदा, उत्कृष्ट वैज्ञानिक एवं निदेशक डी.आर.डी.ई., ग्वालियर चिकित्सीय विषाणुविज्ञान (मेडिकल वायरोलॉजी) के क्षेत्र में तीन दशकों के वैज्ञानिक और तकनीकी प्रबंधकीय अनुभव प्राप्त एक प्रतिष्ठित विषाणु वैज्ञानिक हैं। उन्होंने वर्ष 1991 में ओडिशा पशु चिकित्सा महाविद्यालय से पशु चिकित्सा विज्ञान में स्नातक, वर्ष 1993 में आई.वी.आर.आई., मुक्तेश्वर से पशु चिकित्सा विषाणु विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि और 2002 में जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर से सूक्ष्मजीव विज्ञान (माइक्रोबायोलॉजी) में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आपको मानव संसाधन विकास मंत्रालय के माध्यम से जापान सरकार द्वारा मोनबुशो फेलो के रूप में काम करने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान भी की गयी थी और बाद में आपने आर्बोवायरस पर अनुसंधान करने के लिए लगभग ढाई साल (वर्ष 2002 से 2005 तक) इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन, डब्ल्यु.एच.ओ. रेफरेंस सेंटर फॉर रिसर्च ऑन, नागासाकी यूनिवर्सिटी, जापान में शोध उपरांत अनुसंधानकर्ता (पोस्ट डॉक रिसर्चर) के रूप में भी कार्य किया है।

आपने रणनीतिक जैव रक्षा (जैव परिरोधन एवं जैव प्रमाणीकरण) में अनुसंधान एवं विकास के साथ-साथ तीव्रता से पहचान करने वाली प्रौद्योगिकियों, एंटीवायरल औषधि विकास, नई पीढ़ी के वैक्सीन, आणविक महामारी विज्ञान, जीनोटाइपिंग, फ़ाइलोजेनेटिक मूल्यांकन और जैव चिकित्सीय महत्त्व के उभरते हुए विषाणुओं के परिवहन आदि अनुसंधान कार्यक्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। आपने राष्‍अ्रीय वाहक जनित बीमारी नियंत्रण कार्यक्रम (एन.वी.बी.डी.सी.पी.) एवं संक्रामक रोग निगरानी कार्यक्रम (आई.एस.डी.पी.), स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय, भारत सरकार के तहत डेंगू, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू, कोविड-19 के लिए राष्ट्रीय शीर्ष रेफरल प्रयोगशाला की स्थापना की है। वर्तमान में आप देश में एक राष्ट्रीय जैव रक्षा रेफरल प्रयोगशाला के रूप में अधिकतम सूक्ष्मजैविक परिरोधन परिसर (बी.एस.एल. 4) सुविधा के स्थापना कार्य का नेतृत्‍व कर रहे हैं ताकि भविष्य में आने वाली आकस्मिक जैव आपदाओं का शमन किया जा सके।

आपने डेंगू, जे.ई., चिकनगुनिया, वेस्ट नाइल, स्वाइन फ्लू, सार्स, कोविड-19 जैसे अनेक विषाणुओं के लिए जीन एम्प्लीफिकेशन टेक्नोलॉजी (आर.टी.-पी.सी.आर. और आर.टी.-लैंप) पर आधारित उन्नत आणविक निदान तकनीकों की स्थापना की है। आपको भारत में लैंप प्रौद्योगिकी की शुरूआत करने का गौरव प्राप्त है। आपने सिंथेटिक जीन आधारित प्रक्रिया के माध्यम से उच्च जैव जोखिम वाले विषाणु अभिकारकों जैसे इबोला, चेचक, सी.सी.एच.एफ., के.एफ.डी. और निपाह वायरस के लिए आर.टी.-लैंप परीक्षण का विकास किया है। आपके द्वारा विकसित स्वाइन फ्लू आरटी-लैंप की प्रौद्योगिकी को मेसर्स आर.ए.एस. लाइफ साइंस को हस्तांतरित किया गया है और इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुमोदित सी.डी.सी. आर.टी.-पी.सी.आर. किट के स्वदेशी तकनीकी विकल्प के रूप में भारतीय औषधि महानियंत्रक (डी.सी.जी.आई.) एवं भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आई.सी.एम.आर.) द्वारा अनुमोदित किया गया है। आपने जैवसूट और जैवमास्क के परीक्षण के लिए परीक्षण और मूल्यांकन सुविधा (सिंथेटिक रक्त प्रवेश, नम जीवाणु प्रवेश, विषाणु प्रवेश) की भी स्थापना की है। इसके अलावा, आपने क्षेत्र पर ही तीव्रता से पहचान करने वाली मोबाइल परिरोधन प्रयोगशाला "परख" का भी विकास किया है, जिसका इस्तेमाल मैसूर मेडिकल कॉलेज में हाल ही में फैली कोविड-19 महामारी के दौरान नमूनों के परीक्षण के लिए किया गया था।

आप विभिन्न नीति प्रस्तावों और दिशानिर्देशों के निर्माण के लिए विभिन्न अंतर-मंत्रालयी कार्य बलों (आई.सी.एम.आर., आई.सी.ए.आर., डी.बी.टी.), और तकनीकी और संयुक्त कार्य समूह (टी.डब्ल्यु.जी. और जे.डब्ल्यु.जी.) के सदस्य रहे हैं, जिनमें बी.एस.एल.-3 और बी.एस.एल.-4 प्रयोगशालाओं की स्थापना और पोलियो उन्मूलन टीके इत्यादि के लिए वर्गीकरण तय करना भी शामिल है। आप आई.सी.एम.आर.-एन.आई.आर.ई.एच., भोपाल की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य और मध्यप्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद (एम.पी.सी.एस.टी.), भोपाल के कार्यकारी सदस्य हैं। डॉ. परीडा ने संयुक्त राष्ट्र के जैविक हथियार सम्मेलन (बी.डब्ल्यु.सी.) में तकनीकी विशेषज्ञ के रूप में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पी.एम.-ए.बी.एच.आई.एम. के तहत वी.आर.डी.एल. के उन्नयन के लिए आई.सी.एम.आर. समिति के सह-अध्यक्ष और पशुधन, पशु और संबद्ध विज्ञान पर गठित डी.बी.टी. तकनीकी विशेषज्ञ समिति के सदस्य भी हैं।

आपने शीर्ष समीक्षा वाली पत्रिकाओं (पीयर रिब्यु जर्नल) में 175 शोध पत्र प्रकाशित किए हैं (समग्र सी.आई.-9039, एच-इंडेक्स-49, आई10 इंडेक्स-109 के साथ) और 8 पीएच.डी. छात्रों का पर्यवेक्षण किया है। आपके खाते में 03 अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट और 13 राष्ट्रीय पेटेंट हैं। डी.एस.टी.-एल्सेवियर बिबिलोमीट्रिक विश्लेषण (2009-14) के अनुसार आप इम्यूनोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में शीर्ष 10 शोधकर्ताओं में शामिल हैं। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, अमरीका द्वारा तैयार किए गए डेटा बेस – 2021 के अनुसार उन्हें जैव चिकित्सा अनुसंधान (विषाणु विज्ञान) के क्षेत्र में दुनिया के शीर्ष 2% वैज्ञानिकों में स्थान दिया गया है। इन समस्त योगदानों को दृष्टिगत करते हुए आपको अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है जिनमें डी.आर.डी.ओ. साइंटिस्ट ऑफ द ईयर अवार्ड, डी.आर.डी.ओ. टेक्नोलॉजी ग्रुप अवार्ड, आई.सी.एम.आर. का बसंती देवी अमीरचंद पुरस्कार, डी.बी.टी. का नेशनल बायोसाइंस अवार्ड, डी.एस.टी. का प्रौद्योगिकी व्यावसायीकरण पुरस्कार एवं शैक्षणिक/पेशेवर निकायों द्वारा दिए गए एन.ए.एस.आई. रिलायंस प्लेटिनम जुबली अवार्ड, ओडिशा विज्ञान अकादमी द्वारा सामंत चंद्र शेखर पुरस्कार के साथ – साथ अनेक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं।

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