निदेशालय, डीआरडीओ द्वारा विकसित की जाने वाली प्रणालियों की पहचान, डीआरडीओ की विकसित प्रणालियों का समावेश और उपयोगकर्ता की आवश्यकताओं के लिए प्रौद्योगिकी समाधान प्रदान करने हेतु सेवाओं और डीआरडीओ प्रयोगशालाओं के मामलों में सभी मुद्दों और इंटरफेस के प्रति पारस्परिक विचार-विमर्श प्रदान करने वाला प्रमुख केंद्र है। यह निदेशालय सशस्त्र बलों द्वारा प्रणालियों के अधिग्रहण से संबंधित नीतियों पर डीआरडीओ के विचारों को तैयार करने के लिए भी जिम्मेदार है।
निदेशालय के बारे में
नवंबर 2005 में कार्य व्यवहार के लिए पारस्परिक कार्रवाई निदेशालय (डीआईएसबी) को सीसी आरएंडडी (एसआई) के अंतर्गत बनाया गया था। निदेशालय का नेतृत्व वैज्ञानिक 'जी' (निदेशक) द्वारा किया जाता है और इसमें कई वैज्ञानिक और सेवा अधिकारी सम्मिलित है। सेवा अधिकारी विषय-वस्तु विशेषज्ञ (एसएमई) हैं, जो सेवाओं और डीआरडीओ प्रयोगशाला के मध्य एक इंटरफेस के रूप में डीआईएसबी में तैनात हैं। डीआईएसबी दीर्घावधि नियोजन, क्रियान्वित की जाने वाली परियोजनाओं की पहचान, आवधिक समीक्षाओं का प्रबंधन, परीक्षणों के प्रबंधन आदि तथा भारतीय सशस्त्र सेनाओं को स्वदेशी समाधानों से लैस करने के लिए स्वदेशी रूप से विकसित प्रणालियों के समावेशन को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न हितधारकों के साथ दृढ़तापूर्वक एक व्यवस्थित तरीके से कार्यों के निष्पादन से संबंधित सभी गतिविधियों को समन्वित करती है। निदेशालय परियोजना की शुरूआत से लेकर अंत तक इसकी सभी सेवाओं संबंधित गतिविधियों में आधार प्रदान करती है।
दृष्टि
सशस्त्र बलों को स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों और प्लेटफार्मों से लैस करके दुश्मनों के विरूद्ध युद्ध में श्रेष्ठता और निर्णायक बढ़त प्रदान करना।
मिशन
- सशस्त्र बलों की भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विकसित की जाने वाली प्रौद्योगिकियों / प्रणालियों की पहचान करना
- रक्षा में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए नीतियों का निर्माण करना
- डीआरडीओ प्रयोगशालाओं, उपयोगकर्ताओं, उत्पादन एजेंसियों और अन्य हितधारकों के सहयोग से स्वदेशी प्रणालियों के डिजाइन, विकास और समावेशन को सहायता प्रदान करना