रक्षा अनुसंधान एवं विकास स्थापना (डीआरडीई) का शुभारंभ 1947 से हुआ। 28 दिसंबर 1847 को उस समय के ग्वालियर के महाराजा, जिवाजी राव सिंधिया ने एक प्रयोगशाला का सृजन किया और इसका नाम जिवाजी औद्योगिक अनुसंधान प्रयोगशाला (जेआईआरएल) रखा। जेआईआरएल का उद्घाटन भारत के गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन द्वारा किया गया।
बर्मा के महामहिम रियर एडमिरल, भारत के गवर्नर जनरल, अर्ल माउंटबेटन द्वारा जेआईआरएल का उद्घाटन। प्रयोगशाला की स्थापना महामहिम महाराजा जिवाजी राव सिंधिया ने 28 दिसंबर 1947 को लगभग 5 करोड़ रूपये की लागत से की। लेडी माउंटबेटन और महामहिम जिवाजी राव सिंधिया भी उपस्थित थे।s
जेआईआरएल को रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार ने ववंबर 1963 में अपने अधिकार में ले लिया। तब से 1972 तक यह रक्षा अनुसंधान प्रयोगशाला (पदार्थ) डीआरएलएम, कानपुर के नियंत्राधीन रहा। उसके बाद ड्यूटियों के अलग चार्टर के साथ इसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास स्थापना (डीआरडीई) की एक पूर्ण रुपेण स्वतंत्र इकाई बना दिया गया। इस प्रयोगशालाके प्रमुख महत्वपूर्ण कार्य खतरनाक रसायनों एवं जैविकीय अभिकारकों के साथ साथ जुड़े़ विषाक्त समस्याओं से रक्षा करना या जिसने बाद में कृतिम एवं विश्लेषणात्मक रसायन विज्ञान, सरंक्षी यंत्रों, प्रक्रिया प्रौद्योगिकी विकास, भेषज विज्ञान एवं विष विज्ञान, सूक्ष्म जीव विज्ञान, कीट विज्ञान, जैवरसायन विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी विज्ञान, विषाणु विज्ञान, इलैक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी आदि क्षेत्र में भी काम करना आरंभ कर दिया।