सैन्य इतिहास के कालक्रम में लड़ाई, अभियानों और युद्धों के परिणाम पर पर्यावरणीय कारकों के विनाशकारी परिणाम के ज्वलंत उदाहरण प्रचुर मात्रा में हैं। भारतीय रक्षा बलों की टुकड़ियों से न केवल पर्यावरण के कठिन वातावरण में जीवित रहने की उम्मीद की जाती है, बल्कि अपने सैन्य कर्तव्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन करने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ भी होना चाहिये। रक्षा शरीर क्रिया एवं सम्बद्ध विज्ञान संस्थान (डिपास ) पोषण संबंधी कारकों, सैन्य व्यावसायिक कार्यों, शारीरिक प्रशिक्षण और स्वास्थ्य एवं सैन्य कर्मियों का प्रदर्शन और तैनाती कार्यों के साथ-साथ अत्यधिक ठंड, अत्यधिक गर्मी, उच्च स्थलीय ऊंचाई के संपर्क के प्रभावों का आकलन करने के लिए बुनियादी और अनुप्रयुक्त दोनों अनुसंधान में लगा हुआ हैI1962 में चीनी आक्रामकता के चलते डिपास को औपचारिक रूप से डीआरडीओ के तत्वावधान में स्थापित किया गया था I
1968 में, आर्मी बेस अस्पताल, दिल्ली छावनी के परिसर में प्रयोगशाला को स्थानांतरित किया गया था। वर्ष 1993 में, प्रयोगशाला को लखनऊ रोड, तिमारपुर स्थित दिल्ली में अपने मौजूदा, स्थायी स्थान पर स्थानांतरित किया गया। अपनी सामान्य शुरुआत के पचपन साल बाद, आज डीपास सशस्त्र बलों के लिए मानव केंद्रित अनुसंधान में अग्रणी है। कठिन वातावरण में काम करने वाली मशीन के पीछे मनुष्य के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए डिपास के वैज्ञानिकों और तकनीकी कर्मचारियों की समर्पित टीम मानव कारक संबंधी तकनीकों का विकास कर रही है। डिपास ने रक्षा परिचालन के सभी प्रमुख क्षेत्रों जैसे कि तापीय सुगम क्षेत्र पहचान, ऊष्मीय दुष्प्रभावों की प्रकृति, गर्मियों में नमक और पानी की आवश्यकता, नौसैनिक जहाजों पर रहने की क्षमता का सर्वेक्षण और सैनिकों के शारीरिक प्रशिक्षण और अनुकूलन सूची में बड़े पैमाने पर योगदान दिया है।
अत्यधिक कठिन वातावरण में सैनिकों के प्रदर्शन को बेहतर बनाने और व्यावसायिक खतरों को कम करने के लिए व्यापक शोध किया गया है। डीपास उन्नत मानव प्रयोगात्मक प्रोटोकॉल, अत्याधुनिक पुस्तकालय और सूचना विज्ञान के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण है। किसी भी रणनीति के मूल्यांकन और अनुसंधान के परिणाम की आधुनिक अवधारणाओं के अनुरूप, मशीन - मनुष्य के तालमेल के निर्धारण द्वारा गुणवत्ता में सुधार के लिए कुछ उपयोगी उत्पाद और प्रक्रियाएं विकसित की गई हैं। सशस्त्र बलों द्वारा उपयोग के लिए डिपास द्वारा किये गये अनुसंधान और सिफारिशों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। तीन चरणों वाले परिस्थिति अनुकूलन अनुसूची के विकास से उग्र पर्वतीय बीमारी और उच्च पर्वतीय फुफ्फुसीय शोथ की समस्याओं से लड़ने के लिए सशस्त्र बलों को मदद मिली है और काफी हद जनधन की हानि को कम किया जा सका है। उच्च पर्वतीय फुफ्फुसीय शोथ के उपचार , योग और भारतीय मूल के हर्बल जड़ी-बूटियों से उपचार के तरीके, तुषारदंश की रोकथाम के लिए एलोवेरा आधारित क्रीम, शोर जनित श्रवण क्षमता मे हानि की रोकथाम के लिए ईयर मफ एवं ईयर प्लग आदि कुछ उपलब्धियां हैं, जिन्हें सशस्त्र बलों द्वारा स्वीकार और कार्यान्वित किया गया है। सशस्त्र बलों के लिए सैनिकों और अधिकारियों के चयन में, डिपास ने अनुसंधान के बाद शरीर में वसा और शारीरिक द्रव्यमान सूचकांक के आधार पर विभिन्न शारीरिक मानक निर्धारित किए हैं और पायलटों की भर्ती के लिए भारतीय वायु सेना द्वारा इन्हे लागू किया गया है।
डीपास ने सशस्त्र सेवाओं के लिए पोषण जरूरतों पर आधारित रसद सूची निर्धारण करने, एलसीए के कॉकपिट के डिजाइन तथा मुख्य युद्धक टैंक, अर्जुन के ड्राइवर कम्पार्टमेंट, पैराट्रूपर्स हेतु विकसित जीवन रक्षक प्रणाली और एनबीसी सूट के मूल्यांकन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। डिपास यहीं तक सीमित न रहा, बल्कि इसने माइक्रोवेव विकिरणों के जैविक प्रभावों का अध्ययन करने के लिए अप्रतिध्वनिक कक्ष स्थापित किया है। साथ ही सैनिकों की रहन-सहन को थोड़ा आरामदायक बनाने के लिए गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करने वाली एक आत्मनिर्भर सौर आवास विकसित किया जा रहा है, ऐसे ही एक सौर आवास को बेस कैंप में स्थापित किया है। निकट भविष्य में, डिपास उच्च पर्वतीय क्षेत्रों के स्वास्थ्य और विद्युतीय रूप से गर्म कपड़ों के साथ सैनिकों के कल्याण में सुधार करेगा, तापन और बिजली की आवश्यकता के लिए ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों, ऑक्सीजन संवर्धन, जीनोमिक्स डेटाबेस बनाने, विभिन्न प्रशिक्षण प्रोटोकॉल द्वारा द्रुत पर्यानुकूलन की सुविधा के साथ फ़ील्ड आश्रय, उच्च तुंगताअनुकूलन हेतु हर्बल सप्लीमेंट भी बना रहा है। डिपास ने रेगिस्तान के उष्ण वातावरण मे सैनिक अभियान के संचालन के लिए व्यक्तिगत कूलिंग सूट भी विकसित किया है, निम्न तीव्रता संघर्ष (low intensity conflict) वातावरण में सैनिकों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए उत्पाद एवं योग की उपादेयता निर्धारित की है। डिपास ने 'मैन टू मोलेक्यूल' और 'कॉन्सेप्ट टू प्रोडक्ट' दृष्टिकोण का उपयोग करके सैन्य शरीर विज्ञान और संबंधित विषयों के क्षेत्र में अनुसंधान करने वाले एक प्रमुख संस्थान के रूप में उभरने के लिए एक लंबा सफर तय किया है। अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ तालमेल रखने के लिए, डिपास ने जैव प्रौद्योगिकी, प्रोटिओमिक्स, जीनोमिक्स और नैनोटेक्नोलॉजी के क्षेत्रों में भी अनुसंधान कर रहा है। मौलिक आवश्यकताओं से संबंधित मुद्दों के साथ अनुप्रयोगिक अनुसंधान को भी वरीयता दी गई है । टाइफाइड के लिए एक एचएसपी आधारित वैक्सीन का विकास किया है। उच्च और अत्यधिक ऊंचाई पर सैनिकों की क्षमता में सुधार करने के लिए एक ऑक्सीजन समृद्ध सौर ताप आश्रयस्थल विकसित किया जिसकी स्थापना 16000 फीट की ऊंचाई पर स्थित उत्तरी सिक्किम के गियागोंग में की गई है। ऐसी एक सुविधा चांगला (17664 फीट) लेह में भी स्थापित की गयी है।
पर्वतीय अनुकूलन की अवधि को कम करने के लिए आंतरायिक हाइपोक्सिया एक्सपोज़र प्रोटोकॉल पर काम किया जा रहा है। वर्तमान में सैनिकों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में अभिवृद्धि के तरीकों के साथ-साथ नैदानिक मार्करों (diagnostic markers) की पहिचान के लिए अध्ययन हो रहे हैं । इसके अलावा, हम सशस्त्र सेवाओं, अन्य डी आर डी ओ प्रयोगशालाओं, जैव चिकित्सा एजेंसियों और देश और विदेश की शैक्षिक संस्थाओं के साथ सक्रिय सहयोग करते हैं। डिपास वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं और मानव संसाधन विकास के लिए सतत प्रयत्नशील है ।